क्या है दिल्ली का शराब घोटाला ? What is Delhi Liquor Scam?
दिल्ली सरकार के आलाकमान का तिहाड़ जेल में बंद होना, मीडिया के लिए आज-कल का कथित रूप से सबसे बड़ा मुद्दा है। उनकी जेल यात्रा इतनी आसान भी नहीं थी और आज भी किसी न किसी क़ानूनी दांव – पेंच से वो बाहर निकले के लिए छटपटा रहे हैं।
सबसे बड़े कट्टर ईमानदार का तमगा लिए इन्होने ऐसे-ऐसे खेल किये है जिसको देखकर पूरी दुनिया अच्चम्भित है। आज अपने इस आर्टिकल में जानते है वो सारी बातें जिसके अद्भुत मिश्रण से तैयार होता है दिल्ली का शराब। माफ़ करना- दिल्ली की शराब नीति।
हमारे पास मोटे -तोड़ पर कुछ प्रश्न है जिसके माध्यम से हसमझते हैं पूरी कहानी
- दिल्ली शराब घोटाला है क्या?
- दिल्ली की नई शराब नीति क्या थी?
- शराब नीति में किस तरह के भ्रष्टाचार के आरोप हैं?
- आप(आम आदमी पार्टी) पर क्या आरोप हैं जिसकी वजह से उनकी गिरफ्तारी हुई है?
आइये जानते हैं सभी सवालों के जवाब…
दिल्ली की नई शराब नीति क्या थी?
नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने राज्य में नई शराब नीति लागू की। इसके तहत :
- राजधानी में 32 जोन बनाए गए और
- हर जोन में ज्यादा से ज्यादा 27 दुकानें खुलनी थीं।
- इस तरह से कुल मिलाकर 849 दुकानें खुलनी थीं।
- दिल्ली की सभी शराब की दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया। इसके पहले दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत प्राइवेट थीं।
- लाइसेंस की फीस भी बढ़ा दी। जिस एल-1 लाइसेंस के लिए पहले ठेकेदारों को 25 लाख देना पड़ता था, नई शराब नीति लागू होने के बाद उसके लिए ठेकेदारों को पांच करोड़ रुपये चुकाने पड़े।
नई नीति लागू होने के बाद 100 प्रतिशत शराब की दुकान प्राइवेट हो गईं। सरकार ने तर्क दिया था कि इससे 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा।
घोटाले के आरोप क्यों लगे?
नई शराब नीति से जनता और सरकार दोनों को नुकसान होने का आरोप है। वहीं, बड़े शराब कारोबारियों को फायदा होने की बात कही जा रही है।
इसे समझने के लिए हम थोड़ा आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं।
लाइसेंस फीस में भारी इजाफा करके बड़े कारोबारियों को लाभ:
किसी भी राज्य में शराब ब्रिकी के लिए ठेकेदारों को लाइसेंस लेना पड़ता है। इसके लिए सरकार ने लाइसेंस शुल्क तय किया है। सरकार ने कई तरह की कैटेगिरी बनाई है। इसके तहत शराब, बीयर, विदेशी शराब आदि को बेचने के लिए लाइसेंस दिया जाता है।
अब उदाहरण के लिए पहले जिस लाइसेंस के लिए ठेकेदार को 25 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता था, नई शराब नीति लागू होने के बाद उसी के लिए पांच करोड़ रुपये देने पड़े। आरोप है कि दिल्ली सरकार ने जानबूझकर बड़े शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाइसेंस शुल्क बढ़ाया। इससे छोटे ठेकेदारों की दुकानें बंद हो गईं और बाजार में केवल बड़े शराब माफियाओं को लाइसेंस मिला। आरोप ये भी है कि आप के नेताओं और अफसरों को शराब माफियाओं ने मोटी रकम घूस के तौर पर दी।
खुदरा बिक्री में सरकारी राजस्व में भारी कमी होने का आरोप
दूसरा आरोप शराब की बिक्री को लेकर है। उदाहरण के लिए मान लीजिए पहले अगर 750 एमएल की एक शराब की बोतल 500 रुपये में मिलती थी। तब इस एक बोतल पर रिटेल कारोबारी को लगभग 30 रुपये का मुनाफा होता था, जबकि 220 रुपये उत्पाद कर और 100 रुपये वैट के रूप में सरकार को मिलता था। मतलब एक बोतल पर सरकार को 320 रुपये का फायदा मिलता था।
नई शराब नीति से सरकार के इसी मुनाफे में खेल होने दावा किया जा रहा है।
नई शराब नीति में वही 750 एमएल वाली शराब की बोतल का दाम 500 रुपये से बढ़कर 550 रुपये हो गई। इसके अलावा रिटेल कारोबारी का मुनाफा भी 30 रुपये से बढ़कर सीधे 360 रुपये पहुंच गया। मतलब रिटेल कारोबारियों का फायदा 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ गया। वहीं, सरकार को मिलने वाला 320 रुपये का फायदा घटकर 4 रुपये रह गया। इसमें ~ 2 रुपये उत्पाद शुल्क और ~ 2 रुपये वैट शामिल है।
घोटाले की जांच कैसे शुरू हुई?
इस शराब नीति के कार्यान्वयन में कथित अनियमितता की शिकायतें आईं जिसके बाद उपराज्यपाल ने सीबीआई जांच की सिफारिश की। इसके साथ ही दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 सवालों के घेरे में आ गई। हालांकि, नई शराब नीति को बाद में इसे बनाने और इसके कार्यान्वयन में अनियमितताओं के आरोपों के बीच रद्द कर दिया गया था।
सीबीआई ने अगस्त 2022 में इस मामले में 15 आरोपियों के खिलाफ नियमों के कथित उल्लंघन और नई शराब नीति में प्रक्रियागत गड़बड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज की। बाद में सीबीआई द्वारा दर्ज मामले के संबंध में ईडी ने पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले की जांच शुरू कर दी।
ईडी और सीबीआई दिल्ली सरकार की नई शराब नीति में कथित घोटाले की अलग-अलग जांच कर रही हैं। ईडी नीति को बनाने और लागू करने में धन शोधन के आरोपों की जांच कर रही है। वहीं, सीबीआई की जांच नीति बनाते समय हुई कथित अनियमितताओं पर केंद्रित है।
इन खामियों ने भी दिल्ली सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने जांच करके एक रिपोर्ट तैयार की, जो दिल्ली के उप-राज्यपाल को भेजी गई थी।
रिपोर्ट में भी सात बिंदुओं पर सवाल उठाए गए हैं।
1. मनीष सिसोदिया के निर्देश पर आबकारी विभाग ने एयरपोर्ट जोन के एल-1 बिडर को 30 करोड़ रुपये वापस कर दिए। बिडर एयरपोर्ट अथॉरिटीज से जरूरी एनओसी नहीं ले पाया था। ऐसे में उसके द्वारा जमा कराया गया सिक्योरिटी डिपॉजिट सरकारी खाते में जमा हो जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने बिडर को वह पैसा लौटा दिया।
2. केंद्र सरकार से मंजूरी लिए बिना आबकारी विभाग ने आठ नवंबर 2021 को एक आदेश जारी करके विदेशी शराब के रेट कैलकुलेशन का फॉर्मूला बदल दिया। बियर के प्रत्येक केस पर लगने वाली 50 रुपए की इंपोर्ट पास फीस को हटाकर लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
3. टेंडर दस्तावेजों के प्रावधानों को हल्का करके रिटेल लाइसेंसियों को वित्तीय फायदा पहुंचाया गया। वह भी तब जब लाइसेंस फी, ब्याज और पेनाल्टी न चुकाने पर ऐसे लाइसेंस धारकों पर कार्रवाई होनी थी।
4. सरकार ने दिल्ली के अन्य व्यवसायियों के हितों को दरकिनार करते हुए केवल शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई के नाम पर उनकी लाइसेंस फीस माफ कर दी, जबकि टेंडर दस्तावेजों में ऐसे किसी आधार पर शराब विक्रेताओं को लाइसेंस फीस में इस तरह की छूट या मुआवजा देने का कहीं कोई प्रावधान नहीं था।
5. सरकार ने बिना किसी ठोस आधार के और किसी के साथ चर्चा किए बिना नई नीति के तहत हर वॉर्ड में शराब की कम से कम दो दुकानें खोलने की शर्त टेंडर में रख दी। बाद में एक्साइज विभाग ने केंद्र सरकार से मंजूरी लिए बिना नॉन कन्फर्मिंग वॉर्डों के बजाय कन्फर्मिंग वॉर्डों में लाइसेंसधारकों को अतिरिक्त दुकानें खोलने की इजाजत दे दी।
6. सोशल मीडिया, बैनरों और होर्डिंग्स के जरिए शराब को बढ़ावा दे रहे लाइसेंसियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह दिल्ली एक्साइज नियम, 2010 के नियम 26 और 27 का उल्लंघन है।
7. लाइसेंस फीस में बढ़ोतरी किए बिना लाइसेंस धारकों को लाभ पहुंचाने के लिए उनका ऑपरेशनल कार्यकाल पहले एक अप्रैल 2022 से बढ़ाकर 31 मई 2022 तक किया गया और फिर इसे एक जून 2022 से बढ़ाकर 31 जुलाई 2022 तक कर दिया गया। इसके लिए केंद्र सरकार और उपराज्यपाल से भी कोई मंजूरी नहीं ली गई। बाद में आनन फानन में 14 जुलाई को कैबिनेट की बैठक बुलाकर ऐसे कई गैरकानूनी फैसलों को कानूनी जामा पहनाने का काम किया गया। शराब की बिक्री में बढ़ोतरी होने के बावजूद रेवेन्यू में बढ़ोतरी होने के बजाय 37.51 % कम रेवेन्यू मिला।