जी-20 की बड़ी कामयाबी | Success of G20 Summit
इस नए भारत की बात ही निराली है, यहाँ अब जो भी होता है, पूरा दुनिया देखता है और फिर रोमांचित होने के साथ-साथ हमें सम्मान की दृष्टि से देखता है। ISRO की चंद्रयान उड़ान हो या फिर G -20 सम्मलेन का आतिथ्यमान, पूरी दुनिया ने भारत की क्षमता, दक्षता और कार्यशैली को सराहा है।
भारत ने पहली बार G -20 सम्मलेन का आयोजन किया था, एक शानदार पार्टी के साथ कूटनीति राजनीति का दौर खत्म हुआ। पार्टी वाली जगह सुनसान हो गयी है, मेहमान अपने घर लौट गए हैं, और हम मेजबान उस जलसे की अनुभूति को मन ही मन दोहरा रहे हैं।
Vasudeva Kutumbakam – The world is one family
वसुधेव कुटुंबकम की अलौकिक सिद्धांत पर गढ़ी गयी सम्मलेन की रुपरेखा ने दुनिया के सामने एक बेहतरीन जीवन-रेखा दी है।
जी-20 समिट एक बड़ी कामयाबी साबित हुई है। भारत की सधी हुई कूटनीति और PM मोदी की साफ-सुथरी छबी ने इस समिट के माध्यम से पांच उल्लेखनीय सफलताएं पाई हैं।
जी-20 सम्मेंलन और विस्तार:
अफ्रीकन यूनियन की सदस्यता के प्रस्ताव की अगुवाई भारत ने की थी। यह केवल एक नीतिगत विचार ही नहीं था, इसके पीछे एक ऐतिहासिक भूल को सुधारने की सोच भी थी और भारत को इस उपलब्धि पर गर्व होना चाहिए। पश्चिम देश समावेश(inclusion) की बातें तो करता है, परन्तु जमीनी- स्तर पर कभी भी किसी नए देश को जोड़कर अपने शक्ति को विभाजन होने नहीं देता है। अब भारत ने दिखाया है कि समावेशित विकास कैसे होता है।
नहीं तो पिछले 150 साल से दुनिया की 1/8th जनसँख्या जो कि अफ्रीका की है, अनदेखी रह रही है। उनको अंधेर घोषित करके हम अपना शतुरमुर्ग वाला चेहरा के साथ विश्व का कल्याण नही कर सकते। दुनिया के हर बड़े निर्णय में उनकी भागीदारी जरुरी है। इसलिए अफ्रीकन यूनियन को G -20 में जोड़कर हमने इस संगठन की प्रासंगिकता को और मजबूत किया है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, यह ग्लोबल-साउथ के लिए एक वृहत्तर-संदेश है और उनकी जरूरी चिंताओं के समाधान की कोशिश भी।
अफ्रीकन यूनियन भारत की प्राथमिकताओं में शुमार थी। इसी साल जनवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक वर्चुअल समिट की मेजबानी की थी, जिसे वॉइस ऑफ ग्लोबल-साउथ का नाम दिया गया था। इसमें 125 देश शामिल हुए थे। यानी भारत को जी-20 की प्रेसिडेंसी मिलने की शुरुआत से ही यह मन बना लिया गया था कि भारत ग्लोबल-साउथ की आवाज बनकर उभरेगा।
जब भारत के प्रधानमंत्री ने अफ्रीकन यूनियन के प्रेसिडेंट को गले लगाया तो दुनिया को एक तस्वीर में दो संदेश मिले :
- मोदी का नेतृत्व और शी जिनपिंग की अनुपस्थिति और
- भारत की स्वीकारिता और चीन से छंद-विच्छेद
जी-20 सम्मेंलन – सबसे बड़ा टर्नआउट
जी-20 समिट में 43 वैश्विक-नेता शामिल हुए थे, जिनमें 20 राष्ट्राध्यक्ष, 9 मेहमान-देश और 14 वैश्विक-एजेंसियों के प्रमुख थे। यह किसी भी जी-20 समिट में अभी तक का सबसे बड़ा टर्नआउट था। समिट का एजेंडा भी इतना ही प्रभावी साबित हुआ। इसमें जिन मसलों पर चर्चा की गई, उनमें क्लाइमेट फाइनेंसिंग, सस्टेनेबल विकास, लैंगिक समानता, क्रिप्टो-करेंसी, बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार और कर्ज में राहत आदि शामिल थे।
अंत में जारी किया गया दिल्ली घोषणा-पत्र 34 पेज का था। भारत ने यह सुनिश्चित किया कि फोकस सामाजिक और आर्थिक मसलों पर रहे, जो कि जी-20 का बुनियादी मंतव्य भी है।
जी-20 समिट: कूटनीति में सार्वजनिक-सहभागिता
भारत ने 60 शहरों में 220 बैठकें कीं। इसके पीछे विचार था कि जी-20 को राष्ट्रीय-राजधानी से परे ले जाया जाए। इसमें लगभग डेढ़ करोड़ लोग किसी न किसी रूप में शामिल हुए, जैसे संस्थागत कार्य या आतिथ्य-सत्कार और सांस्कृतिक कार्यक्रम। भारत जी-20 के लिए एक नया टेम्पलेट रचना चाहता था, जो बंद कमरों में होने वाली बैठकों के दायरे से बाहर हो। इसके पीछे की सोच स्पष्ट थी- अगर जी-20 के निर्णय लोगों को प्रभावित करते हैं तो इसकी प्रक्रिया में जनभागीदारी भी होनी चाहिए। भारत इसे जी-20 का लोकतंत्रीकरण कहता है।
मानवता के लिए सार्वभौमिकता ही जरुरी
सर्वसम्मति का निर्माण करना कहने में जितना सरल है, करने में उतना ही कठिन। आज हम एक अत्यंत ध्रुवीकृत और विभाजित दुनिया में रह रहे हैं।
दुनिया के सामने दो बड़ी समस्या है:
- पश्चिम देश को रूस और चीन से समस्या है और चीन को जापान और दक्षिण कोरिया से। फिर अमेरिका को उत्तर-कोरिया से दिक्कत है। रूस, चीन और उत्तर-कोरिया आपस में करीब होते हुए भी दूर हैं।
- अफ़्रीकी दर्जनों देश अपने देश के अंदर या फिर अपने पड़ोसी देश से खुला युद्ध लड़ रहा है परन्तु वहाँ शांति स्थापित करना किसी भी संगठन के लिए जरुरी नहीं है क्युकी ये पश्चिमी खुली पूंजीपति देशों के लिए ध्यान देने वाली बात नहीं लगती। जिससे की अफ़्रीकी देश सारी दुनिया से अलग-थलग रह जाते हैं।
और भारत इन दोनों समस्या को पाटता हुआ नज़र आता है। आज अमेरिका और रूस के बीच भारत मध्यस्ता करने लायक हो गया है और अफ़्रीकी देशों के सुधारक के रूप में भी एक अलग पहचान बना ली है।
भारत ने सम्मलेन में सर्वसम्मति के निर्माण में सफलता पाई और एक ऐसा घोषणा-पत्र जारी किया, जिससे सभी पक्ष सहमत हो सके। आ
जी-20 की प्रासंगिकता और उसके प्रति विश्वास:
सच्चाई यह है कि, मानव इतिहास के लिए पिछली 4-5 साल सबसे मुश्किल समयकाल है और इसलिए इस समिट से किसी को भी ज्यादा अपेक्षाएं नहीं थीं।
- कोविड महामारी में जी-20 वैक्सीन की डिलीवरी सुनिश्चित नहीं कर पाया
- न ही वह वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुरक्षा कर सका।
- रूस- यूक्रेन के बीच की युद्ध और दुनिया की मजबूरी
लोग सोचने लगे कि इस समूह का क्या औचित्य है। प्रधानमंत्री मोदी ने विश्वास के इस अभाव के बारे में खुलकर बात की और इसे सुधारने की कोशिश में सबकी भागीदारी निर्धारित कराई।
पश्चिम के देश और रूस इस समिट में एक फिक्स्ड माइंडसेट लेकर आए थे और वे उससे एक इंच भी डिगने को राजी नहीं थे। लेकिन अंत में भारत ने सर्वसम्मति के निर्माण में सफलता पाई।
रूस और पश्चिम के देशों ने भारत का अभिवादन किया और समिट को एक बड़ी कामयाबी बताया । लेकिन भारत ने दिखाया है कि जी-20 आज भी क्यों मायने रखता है और इस समूह की रक्षा और विस्तार क्यों जरूरी है।
PM Narendra Modi
India became a successful host of the first inaugural Voice of the Global South Summit, which allowed 125 countries to talk about their concerns and objectives.
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