Politics and Prime Ministers of India
Politics and Prime Ministers of India
भारतीय राजनीति हमेशा से ही प्रयोगवाद का अखाड़ा रहा है। चाणक्य की कूटनीति ने मानवजाति को लोकतंत्र का सिद्धांत दिया जिसने लाखो की विशाल सेना को नेस्तेनाबूद करके राज्यतंत्र की व्यवस्था में नीति की अहमियत को स्थापित किया। अशोक की अहिंसा से बाबर की क्रूरतम कत्त्लेआम को भारत ने देखा है राजनीति की भेष में। मतभेद और षड़यंत्र की रंजिश ने देश को जहाँ हजारो सालो की विदेशी गुलामी का जख्म दिया।
प्रजातंत्र की गढ़ कही जाने वाली ये धरती जब अंग्रेजो के चंगुल से आजाद हुआ तब इस राजनीति की आधुनिक प्रयोगवाद की पहली नींव की ईट गढ़ी गयी थी। जनता के द्वारा चुनी मंत्रिमंडल की पहली जनतांत्रिक निर्णय को बदल कर देश को मिला था पहला प्रधानमंत्री –
जवाहर लाल नेहरू:
बहुमत की वोट को गाँधी की एक ठगनीति ने बौना साबित कर दिया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र को मिल गया था पहला अजनतांत्रिक प्रधान। देश ठगा महसूस कर रहा था क्युँकि
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के करीब पांच सौ से भी ज्यादा रियासतों का भारत में विलय जिस महापुरुष ने किया था, वल्लभभाई पटेल जो की कुशल कूटनीति थे और जरूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए अधिकांश रियासतों को तिरंगे के तले लाये। ‘लौह पुरुष’ और ‘भारत के बिस्मार्क’ की उपाधि से विभूषित महान स्वंतंत्रता सेनानी को गाँधी की दोगला निति ने सत्ता से दूर कर दिया।
वह देश जो अभी आजाद हुआ था, जिसकी भविष्य की पृष्भूमि सबका साथ, सबका विकास के मूल मन्त्र पर तैयार हुआ था, को नेतृत्व करने के लिए सबसे बकबास भारतीय को चुना गया था। जो सिर्फ गोरे लोगो की और 1 % भारतीय भावनाओ की समझ रखता था को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया।
देश ने आजादी का जश्न विभाजन की दंश और कत्ले-आम की बिभिस्का से मनाया था।
15 अगस्त को, भारत के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने अपने देश की स्वतंत्रता और “नियति के साथ प्रयास” का प्रसिद्ध जश्न मनाया। लेकिन मानवता के इतिहास की सबसे बड़ी मुसीबत तो पहले से ही मौजूद थी। दो देश के प्रधान १४ और १५ अगस्त को गद्दी पर तो आसीन हो गए थे परन्तु देश की सीमा में क्या होगा २ दिन बाद निर्णय लिया गया।
मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए, ज्यादातर पश्चिम की ओर चले गए, जबकि हिंदुओं और सिखों ने विपरीत यात्रा की। लगभग 20 मिलियन लोग भाग गए। दोनों समुदायों ने अपने पीछे अपनी संस्कृति की अवशेष और भयानक तबाही छोड़ी। लगभग 20 लाख लोग मारे गए। कितनों के साथ बलात्कार हुआ, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
सिर्फ एक इंसान की महत्वाकांक्षा और दूसरे की लोगों से असीम लगाव, ने एक नए स्वतंत्र देश को किसी एक परिवार के नाम गुलाम करने जा रही थी।
यह नेहरू की ही असफलता थी की, आज भी भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य कश्मीर पर दावे को लेकर भारत और पाकिस्तान ने तीन युद्ध लड़े।
इंदिरा गाँधी :
Pt. नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने और उनके संदेहात्मक निधन के बाद देश की प्रधानमंत्री बनी। यह उस समय की बात है जब देश के दो दिग्गज नेता मोरारजी देसाई और गुलजारी लाल नंदा को दरकिनार करते हुए भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया। और यहाँ से शुरू हुआ एक राजवंश की भारतीय जनतंत्र पर कब्ज़ा करने की दासता। इंदिरा गाँधी 1959 को कांग्रेस की अध्यक्ष बनती है और केरल की चुनी सरकार को बर्खास्त कर देती है, इंदिरा की पहली राजनीतिक तानाशाही का यह उदाहरण दुनिया ने देखा था।
भारत में पहली बार हुआ था जब लोगों के द्वारा चुनी सांसदों ने कांग्रेस संसदीय दल के नेता के रूप में किसी ऐसे व्यक्ति को अपना प्रधान बनाया था जो की लोकसभा की सांसद नहीं थी। अगस्त 1964 से फ़रवरी 1967 तक श्रीमती गाँधी राज्य सभा की सदस्य रहीं। यह बहुत ही हास्यपद है की प्रधानमंत्री लोकसभा के लिए RESPONSIBLE होता है परन्तु Mrs. गाँधी तो उस सभा की मेंबर ही नहीं थी। यानि की Power without Responsibility
यह पहली प्रधानमंत्री थी जिसे पार्टी से निष्काषित कर दिया गया था 1969 में। फिर चालाकी से, गांधी ने पार्टी के अधिकांश सदस्यों के साथ मिलकर अपने चारों ओर एक नया गुट बनाया, जिसे “नई” कांग्रेस पार्टी कहा गया।
1971 के राष्ट्रीय चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी की उनकी पराजित प्रतिद्वंद्वी ने आरोप लगाया कि उन्होंने उस प्रतियोगिता में चुनाव कानूनों का उल्लंघन किया था। 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया, जिसका मतलब था कि वह संसद में अपनी सीट से वंचित हो जाएंगी और उन्हें छह साल तक राजनीति से बाहर रहना होगा। सत्ता को अपने हाथों से जाते देख, उन्होंने पूरे भारत में आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी, अपने राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया।
बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान को मंजूरी देने के अलावा, गांधी ने 1975 -77 डिक्री द्वारा शासन किया, यह ऐसा समय था जब सरकार ने नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया था, सेंसरशिप लगा दी थी। प्रेस, और तमाम असहमत लोगों को गिरफ्तार किया।
राजीव् गाँधी :
इंदिरा गाँधी के उत्तरदायित्व की भूमिका में हमेश संजय गाँधी रहते थे और राजीव गांधी राजनीति से इतर हवाई सैर पर रहते थे, परन्तु संजय की मौत ने इंदिरा को अपने घराने से राजनीति को दूर जाता दिखायी दिया, फिर राजीव को नए छबि के साथ इंदिरा ने राजनीती में लाया और सिर्फ २ साल में कांग्रेस की महासचिव पद पर राजीव गाँधी आसीन हो गए। इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद राजीव गाँधी को पुश्तैनी रसूख के मुताबिक माता की सत्ता मिली। देश को सबसे युवा प्रधानमंत्री मिल गया था। जबकि उस समय के गृह मंत्री PV नरसिम्हा राव थे और उन्हें ही देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहिए था।
और फिर देश ने पहली बार ऐसा देखा था की माँ की मौत की संवेदना में देश पूरी तरह से एक साथ होकर राजीव को देश का प्रधानमंत्री बना दिया।
राजीव गाँधी वैसे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्हे सामाजिक क्षेत्र (Public Affairs) में बिना किसी अनुभव के देश के सबसे बड़े पद को आसीन किये थे। राजीव गाँधी के राजनितिक प्रयोग को आप नीचे लिखे बिंदुओं से समझ सकते हैं।
- राजीव गांधी पर सबसे बड़ा आरोप 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले में संलिप्त होने का लगा, पहला मौका था जब किसी प्रधानमंत्री को घोटाले में खींचा गया था। जिसके कारण उनको प्रधानमन्त्री पद से भी हाथ धोना पड़ा।
- शाहबानो प्रकरण में उन्होने संसद में कांग्रेस के प्रचण्ड बहुमत का दुरुपयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उल्टा विधेयक पारित करवा लिया। आज तक के स्वाधीन भारत के इतिहास का सबसे घिनौना खेल था जिसे राजीव गाँधी ने सिर्फ वोट बैंक के लिए किया था।
- राजीव ने कहा था कि “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है।” और यह बड़ा पेड़ इंदिरा गाँधी को बता रहे थे और धरती पूरी जनता को या फिर कहे तो सिख समुदाय को।
- राजीव गाँधी पर स्विस बैंकों में ढाई बिलियन स्विस फ्रैंक काले धन रखने का आरोप लगाया,और यह आरोप भी सत्य साबित हुआ ।
- राजीव गाँधी पर भोपाल गैस काण्ड के आरोपी वारेन एंडरसन को रिश्वत लेकर देश से भगाने का आरोप भी लगाया गया है।
PV नरसिम्हा राव :
भारत ने गढ़बंधन की सरकार को पहले भी देखा था पर इस समय गठबन्धन की कमान थी सबसे अनुभवी और पहली बार गैर-गाँधी कांग्रेसी PV नरसिम्हा राव के पास।
राजीव गाँधी की हत्या के बाद 1991 में कांग्रेस की जीत के बाद राजनीति से सन्यास ले चुके नरसिम्हा राव ने कांग्रेस की नेतृत्व को स्वीकारा और अगले 5 साल तक देश को नेतृत्व दिया।
देश को दुनिया के बाजार के लिए OPEN करने और पूंजीवादी सिस्टम को लागु करने की सबसे बड़ी सफलता है इनके पास। परन्तु कांग्रेस और भारत ने इनको वो श्रेय कभी नहीं दिया।
1991 में, राव ने ऐतिहासिक आर्थिक परिवर्तन शुरू करने के लिए मनमोहन सिंह को अपने वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया। राव के जनादेश के साथ, मनमोहन सिंह ने भारत के सुधारों के वैश्वीकरण के पहलू की शुरुआत की, जिसने लगभग दिवालिया देश को आर्थिक पतन से बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की नीतियों को लागू किया।
आज तक देश में जो भी सुधार हुए थे उसकी उपलब्धि हमेशा PM के नाम के साथ जोड़ा जाता है परन्तु LPG का श्रेय PV नरसिम्हा राव को ना देकर मनमोहन सिंह को देना कांग्रेस की सबसे बड़ी दोगलापन है।
राव को उस समय संसद के माध्यम से आर्थिक और राजनीतिक कानून बनाने की उनकी क्षमता के लिए ‘ चाणक्य’ भी कहा जाता था, जब की वह अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे थे।
नया प्रयोग:
- उन्होंने पहली बार एक गैर-राजनीतिक अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को अपने वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त करके एक परंपरा को तोड़ा।
- उन्होंने विपक्षी दल ( जनता पार्टी ) के सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी को श्रम मानकों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी नियुक्त किया । यह एकमात्र उदाहरण है कि किसी विपक्षी दल के सदस्य को सत्तारूढ़ दल द्वारा कैबिनेट रैंक का पद दिया गया।
- उन्होंने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र की बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भी भेजा।
1996 की हार के बाद सोनिया गाँधी के दबाब में उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा और फिर शुरू हुआ सोनिया गाँधी के राज की।
अटल बिहारी वाजपेयी :
वाजपेयी राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण इन्हे भीष्मपितामह भी कहा जाता है। 24 दलों के गठबन्धन और 81 मंत्री से सरकार बनाई थी।
- आजीवन अविवाहित रहे।
- वे एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता (ओरेटर) एवं सिद्ध हिन्दी कवि भी रहे है।
- परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की सम्भावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये।
- सन् १९९८ में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सी०आई०ए० को भनक तक नहीं लगने दी।
- अटल जी सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इन्दिरा गाँधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री भी। वह पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गठबन्धन सरकार को न केवल स्थायित्व दिया अपितु सफलता पूर्वक संचालित भी किया।
- अटल जी ही पहले विदेश मन्त्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।
वाजपेयी-मोदी की भारतीय राजनीति में योगदान | Contribution of Vajpayee Modi in Indian Politics
मनमोहन सिंह :
यह पहली बार किसी लोकतंत्र में हुआ होगा जब किसी देश का प्रधान किसी देश के जनता और सांसद के प्रति जिम्मेदार न होकर किसी एक औरत के लिए जिम्मेदार और वो भी 10 साल के लिए।
जब आप लोकतंत्र की बात करते हो तो हर पायदान पर लोकतंत्र की आत्मा जिन्दा रहना चाहिए। और वह लोकतंत्र तब जिन्दा रहेगा जब आप नीचे से ऊपर की ओर या फिर ऊपर से नीचे की ओर एक लोकतंत्रात्मक इकाई का निर्माण होने देंगे।
मनमोहन सिंह ऐसे लोग प्रधानमंत्री जब बन जाते हैं तो वो देश का ना होकर किसी खाश एक लोग का हो जाते हैं और प्रधान होने के नाते जो भी फैसला लेते हैं वो फिर देश हित में नहीं होता है।
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनाये जाने के पीछे की कहानी कुछ ऐसी शुरू हुआ। सबसे पहले, सोनिया गाँधी पहले UPA का गढ़बंधन किया और सारे दल को शामिल किया जो की क्षेत्रीय पार्टी थी।
2004 के लोकसभा चुनावों में किसी को ये अंदाजा नहीं था कि एनडीए को जनता बेरहमी से सत्ता से खारिज कर देगी। ना ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा लोगों को लुभा पाया और ना ही अटल बिहारी वाजपेयी की साफ सुथरी छवि।
नरेंद्र मोदी :
यह पहली बार हुआ था की इलेक्शन से पहले प्रधानमंत्री के नाम के रूप में किसी राज्य के मुख्यमंत्री का नाम आगे किया गया था और उनके नाम पर ही हर संसदीय क्षेत्र में वोट अपील की गयी थी। इलेक्शन के बाद रिजल्ट आया, कांग्रेस सर्वत्र फैलाई गयी भ्रष्ट्राचार से अपने अस्तित्व के बाद की सबसे निचली कड़ी पर आ गयी थी। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और लगभग २५ साल बाद एक स्पष्ट बहुबाट से सरकार बनायीं।
यह सरकार 10 सालो से पूर्ण बहुमत से देश की सत्ता पर काबिज है और बाकी सारी पार्टिया या तो क्षेत्रीय बन कर रह गयी है या फिर छिटपुट मेल-मिलाप करके अपनी अस्तित्व को बचने की कोशिश कर रही है।
इंडिया गढ़बंधन :
2024 इलेक्शन से पहले सभी पार्टियों ने एक नयी गढ़बंधन बनायीं है जिसका नाम है I.N.D.I.A , acronyms यदि करे तो वो भारत का इंग्लिश नाम होगा। जिसको लीड कही न कही कांग्रेस करती हुई आ रही है। यह सारे वो पार्टी है जो पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सामने लगातार हासिया पर आती चली गयी है और अब कही न कही एक साथ मिलकर एक इंसान के खिलाफ लड़ने को तैयार हो रही है।
यह इंडिया 26-28 पार्टियों का मेल है और सबके सब अपने धुन पर चलने वाले हैं। हर किसी का अपना AIM है। आप यहाँ AAP और Congress को साथ पाओगे जो 10 साल पहले दिल्ली में और 1-2 साल पहले पंजाब में एक दूसरे के खून के प्यासे थे। लालू और नितीश को साथ में पाओगे, जबकि लालू के अस्त होने के बाद ही नितीश राज का उदय हुआ था।
शिव-सेना का साथ एनसीपी कितना देर तक दे पाएगी देखने वाली ही होगी।