Free Hindu temples from Government
मंदिर हिंदू धर्म की आधारशिला है।
मंदिर जीवित संस्थाएं हैं जो जुड़ी परंपराओं, रीति-रिवाजों और समुदायों के अस्तित्व को सुनिश्चित करते हैं।
मंदिर व्यक्ति और पर्यावरण की शुद्धि के लिए सकारात्मक आध्यात्मिक ऊर्जा को संरक्षित करने, बढ़ाने और फैलाने में मदद करते हैं।
मंदिर आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और सामुदायिक सहायता केंद्र हैं, जो सभी हिंदुओं को एकजुट करने का काम करते हैं।
मंदिर केवल पूजा-मण्डली के स्थान नहीं हैं। वे हिंदू संस्कृति की सुरक्षा, संरक्षण और पोषण में असाधारण भूमिका निभाते हैं। हिंदू ने मंदिरों का समर्थन किया और बदले में मंदिरों ने वाणिज्य, कला, संस्कृति और शिक्षा का पोषण किया।
लुटेरे जिहादी गिरोहों को इसका एहसास हुआ और उन्होंने हमारे मंदिरों को जला दिया। सोमनाथ मंदिर को 17 बार लुटा गया , यह मंदिर इतना अमीर था की 25 साल तक आतंकवादियों ने इसे लुटता रहा।
Free Hindu temples from Government
धूर्त अंग्रेजों को इसका एहसास हुआ और उन्होंने हमारे मंदिरों पर जबरन कब्ज़ा करना शुरू कर दिया।
और आज़ादी के बाद के भारत में, हिंदू मंदिरों को ‘धर्मनिरपेक्ष’ सरकारों के लिए नकदी का साधन बना दिया गया है।
मन्दिरों का खजाना लूट लिया गया, उनकी जमीनें लूट ली गईं और बेच दी गईं। मंदिरों की स्वायत्तता खत्म होने से हिंदू मंदिरों से अलग-थलग हो गए, जिसके परिणामस्वरूप नैतिक पतन हुआ और हिंदू धर्मांतरण के लिए तैयार हो गए।
हिंदुओं द्वारा दान किए गए धन को हिंदुओं की भलाई और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल करने के बजाय सरकार द्वारा संचालित ‘विकास और निर्माण’ योजनाओं में खर्च कर दिया जाता है।
हिंदुओं का पैसा दूसरे समुदायों में बांट दिया जाता है जो उत्पीड़न के नाम पर हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। हिंदू लोग अपने समुदाय की मदद नहीं कर सकते क्योंकि हम हिंदुओं की आर्थिक और नैतिक रूप से रक्षा करने के लिए मंदिर का उपयोग एक संस्था के रूप में नहीं कर सकते क्योंकि यह राज्य द्वारा नियंत्रित है।
मंदिर को मुक्त कराने से हम और अधिक मंदिरों का निर्माण करेंगे, उसी तरह चर्चों की तरह जिनके पास 2% अल्पसंख्यक आबादी होने के बाद भी इस देश में सबसे अधिक अचल संपत्ति है। वे कॉलेजों, स्कूलों पर कब्ज़ा कर रहे हैं और उनका निर्माण कर रहे हैं जहां हिंदू अपने बच्चों को ईसाई नैतिकता सीखने के लिए भेजते हैं और जब वे उन संस्थानों से बाहर आते हैं तो क्रिप्टो ईसाई बन जाते हैं। हिंदुओं को नुकसान पहुंचाने के लिए।
हमारी सरकार जानबूझकर हिंदुओं को ऐसे ही रखती है ताकि हिंदू बंटे रहें और वे चुनाव जीत सकें। यूरोप और अमेरिका में चर्च ख़त्म हो रहे हैं, कभी सोचा है कि यह भारत में क्यों फल-फूल रहा है? यह योजनाबद्ध है और हिंदू वर्षों से इसकी अनदेखी कर रहे हैं। यदि हिंदू मुखर होकर और सर्वसम्मति से नहीं लड़ेंगे तो हमारी सरकार इसे नजरअंदाज कर देगी।
यह लोकतंत्र नहीं है, यह अभी भी एक औपनिवेशिक शासन है जहां हिंदुओं का पैसा हिंदुओं के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और अन्य लोग उनके पैसे का उपयोग करते हैं और फलते-फूलते हैं।
हिंदू मंदिर शिक्षा, वाणिज्य, कला, संस्कृति, आध्यात्मिकता के केंद्र थे। लेकिन जिस दिन से मंदिरों को उनकी उचित कमाई से वंचित कर दिया गया, तब से इन सबका पतन होता चला गया। इसके परिणामस्वरूप सनातन हिंदू धार्मिक संस्कृति का समग्र पतन हुआ।
किस तरह सरकार मंदिर को लूट रहे हैं :
- प्रशासन पर सरकारी नियंत्रण
- आय पर कर
- संपत्ति पर सरकारी नियंत्रण
- संस्कारों और रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध
- सहयोगी संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण
मंदिरो से लूट:
आज भारत में कुल 20 लाख मंदिर है जिसमे से लगभग 9 लाख सरकारी मान्यताप्राप्त। इस 9 लाख में से 5 लाख मंदिरो को स्थानीय सदस्यों या संगठन द्वारा संचालित किया जाता है बाकी के 4 लाख पूरी तरह से सरकार के कब्जे में रहता है।
तमिलनाडु में 36000 मंदिर की 4,70,000 एकड़ जमीन और आंध्र-तेलंगना में 4,00,000 एकड़ जमीन सरकार के कब्जे में है। सरकार औसतन इससे 1,00,000 करोड़ की कमाई करती है। अरबों की कमाई देने के बाद भी मंदिर सरकार की दोगला निति के कारण बर्बाद हो रही है।
तमिलनाडु सरकार ने हाई कोर्ट में बताया था की :
- 12000 मंदिरों में कभी पूजा नहीं होती है।
- 34000 मंदिरों की साल की कमाई रु. 10000/- है
- 37000 मंदिरों में सिर्फ 1 व्यक्ति है जो पूजा करा सकता है
और यह बिडंबना है की तमिलनाडु सरकार अपने को नास्तिक कहती है वो खुद को भगवान् से विरक्त रखते है परन्तु राज्य के हर मंदिर ट्रस्ट में सरकार के मंत्री बैठे रहते हैं।
हैदराबाद में एक मंदिर है, चिलुकुरु बालाजी। मंदिर पर कब्ज़ा करने की सरकार की कई कोशिशों को पुजारियों ने नाकाम कर दिया है। पुजारियों ने कहा कि मंदिर में कोई हुंडी नहीं होगी और वे सरकार की बार-बार की कोशिशों का विरोध करने में सक्षम हैं।
https://youtu.be/YcFslvohCXM
मंदिर की भूमि धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान की जाती है। सरकारी उदासीनता के कारण यह जमीन अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई। यहां तक कि सरकार भी उचित मुआवजे के बिना इस भूमि का उपयोग करती है।
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2015 में ओडिशा सरकार ने 131 एकड़ जमीन जगन्नाथ मंदिर का बेच दी अपनी सरकारी खजाने को भरने के लिए।
एक मंदिर जिसे इलाके के निवासियों ने 20 वर्षों में विकसित किया था, उसे एक दिन सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया। अब, रखरखाव और अपनाई जाने वाली विधियां खराब हो गई हैं और हमें शायद ही वहां जाने का मन करता है। 100 प्रतिशत सच!
अरबों की कमाई देने के बाद भी मंदिर को सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिलता है – जिसके कारण :
- मंदिर परिसर की ख़राब व्यवस्था
- मंदिर परिसर से मूर्ति और आभूषण का चोरी होना
- मंदिर परिसर के जमीन का अतिक्रमण
- मंदिरों के इमारतों की हालत
- भक्तों के साथ ख़राब अनुभव
सेकुलर भारत में सिर्फ हिन्दू के मंदिर ही क्यों ?
क्योंकि मस्जिद और गिरजाघर अति-संवेदनशील जातियों के पूजा की संस्था हैं – जहाँ टोपी के गिरने मात्र से विद्रोह शुरू हो जाती है।
भारत जिसकी धाती हिन्दू ने हज़ारो साल से थाम के रखा है, गरिमा को बचाके रखा है उसके साथ आजादी के बाद सबसे ज्यादा बर्बरता हुई है। संख्या- बल में हम बाहुल्य हैं लेकिन सशक्तिकरण में सबसे पीछे। और
हमारे मंदिर सरकार के लिए Money Bank हैं, जबकि मस्जिद गिरजाघर Vote Bank.
धर्मनिरपेक्षता नामक स्पैम धीरे-धीरे, लेकिन लगातार हिंदू धर्म को मार रहा है।
तीन प्रश्न जो हमें पूछनी चाहिए :
- Richest land Owner in India? – Churches
- Who are paying hefty income to Government ? – Hindu Temple
- Who are never questioned about their fund? – Mosques
और वो हमें सेक्युलर कहते हैं।
इतना ही नहीं और बातें जो हमें मालूम होनी चाहिए :
- मंदिर – Managed by temple trustee and appointed by State Government
- गुरुद्वारा – Managed by local committee
- मस्जिद – Managed by local mosque committee
सरकार से मांग
- सरकार को अपने कब्जे में लिए गए मंदिरों को मुक्त कराकर न्यायालय के आदेशों का पालन करना चाहिए।
- सरकार को घोषणा करनी चाहिए कि मंदिर की संपत्ति का उपयोग विकास उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा
- सरकार को ऐतिहासिक महत्व के मंदिरों के तत्काल जीर्णोद्धार के लिए बजट प्रावधान करना चाहिए।
- तीर्थस्थलों एवं मन्दिरों पर किलों पर किये गये अतिक्रमण का सर्वेक्षण कर तत्काल हटाया जाये।
- सरकार को मंदिर के पुजारियों को मासिक वजीफा देना चाहिए क्योंकि उनकी आय नगण्य है।
- सरकार को एक अधिसूचना जारी करनी चाहिए कि मंदिर परिसर में शराब और मांस नहीं बेचा जा सकता है।
सुधार :
बहुसंख्यक समुदाय में समन्वय और एकजुटता का सर्वथा अभाव है। नागरिकों को ग़लती में पड़ने से बचाना सरकार का कार्य नहीं है; सरकार को ग़लती में पड़ने से बचाना नागरिक का कार्य है।
अब समय आ गया है कि हिंदुओं को एहसास हो और सदियों से उन पर हो रहे व्यवस्थित उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट हों। यह तय करने का समय आ गया है कि क्या हम सिर्फ अमेरिका जैसा कंक्रीट का देश चाहते हैं जहां कोई संस्कृति नहीं बची है या वास्तव में हम अपने प्राचीन सांस्कृतिक लोकाचार को बचाना चाहते हैं।
हम राज्य से हमारा पक्ष लेने के लिए भी नहीं कह रहे हैं, हम केवल यह चाहते हैं कि वे हमारे मामलों में हस्तक्षेप न करें जैसा कि वे दूसरों के साथ करते हैं और एक सभ्यता जिसने हजारों वर्षों के उत्पीड़न के बाद संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष बने रहने का विकल्प चुना है, कम से कम यह तो इसकी हकदार है।
- हमें प्रयास करना होगा की लोगों को शिक्षित करें और बताये की उनके धार्मिक स्थलों के साथ कैसी अन्याय की जाती है। राजनितिक पार्टियों के ऊपर दबाब बनाना होगा की इस मुद्दे को वो अपनी राजनितिक एजेंडा में शामिल करे।
- बक्सों में दान न करें, बेहतर होगा कि इसे सीधे ब्राह्मण को दें, अगर कोई वास्तव में कुछ करना चाहता है तो मंदिर के भीतर प्रसादम/लंगर या अन्नधनम की व्यवस्था करें।छोटे मंदिरों में दान करें जो आम तौर पर पड़ोस के स्वामित्व में होते हैं ताकि बड़े मंदिरों के बजाय मंदिर का विकास किया जा सके।
- बुद्धिमानी से दान करें, क्योंकि यदि धन का प्रयोग गलत तरीके से किया जाएगा तो उसका पाप हमें भी मिलेगा, जैसा कि गीता में लिखा है।
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और अंत में यही चाहता हूँ कि सभी मंदिरों के स्वरूप में सुधार हो, सांस्कृतिक कार्यक्रम हों, साफ-सफाई और कला हो, कलाकृतियों का संरक्षण हो और स्थलों का जीर्णोद्धार हो, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रसार में सक्रिय भूमिका हो, आसपास के शहरों का उत्थान हो और इससे भी बड़ा गौरव हो। मंदिरों का प्रबंधन उन लोगों पर छोड़ देना बेहतर है जो इन क्षेत्रों को गहराई से जानते हैं।
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