वाजपेयी-मोदी की भारतीय राजनीति में योगदान | Contribution of Vajpayee Modi in Indian Politics
त्रेता युग के श्री राम की तुलना, द्वापर युग के श्री कृष्ण से नहीं की जा सकती। वैसे ही अटल बिहारी वाजपाई की तुलना नरेंद्र मोदी से भी नहीं की जा सकती। दोनों ही अपने-अपने समय के युग-पुरुष हैं।
वाजपेयी-मोदी की राजनीति में योगदान | Contribution of Vajpayee Modi
एक जहाँ भारतीय राजनीति के उत्कृष्ट मर्यादा मार्ग पर चलने वाले अटल जी हैं तो दूसरा यथार्थ- वाद पर चलने वाले मोदी। आप अटल जी जैसे नेता को हर जगह सबसे अच्छे उदाहरण के रूप में देख पाते हैं, वो ना समय की परवाह करते हैं, ना लोगो की, वो बस अपने सिद्धांत के धनी हैं , और अपने सिद्धांत को ही दर्शन का नाम देकर आगे बढ़ते रहते हैं। जिंदगी में आये बड़े से बड़े मुश्किलें भी उनके लिए बस रास्ते पर बिखड़े छोटे-छोटे कंकड़ -पत्थर होते हैं। इनकी चोट उन्हें दर्द देती है, परेशान भी करती है पर पथ से विचलित नहीं कर पाती।
जबकि यथार्थ-वादी नेता जैसे की हमारे प्रधानमंत्री मोदी हैं, समय की चाल के साथ अपने कार्यशैली में बदलाव करते रहते हैं। बुरा के साथ बुरा करके ही उससे निजात पाया जा सकता है। यही तो इनकी विशेषता है, घाव का इलाज करने की जगह ये घाव होने के कारणों पर ध्यान देते है। घाव समय के कुछ थपेड़ो की चोट से खुद ठीक हो जाएगी, पर ऐसी व्यवस्था की जाए की आगे से वो घाव शरीर की कष्ट को फिर से ना कुरेदें। आप कश्मीर की समस्या और पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति से वाकिफ होंगे ही, तो ये है मोदी की कार्यशैली।
वाजपेयी जी ने भाजपा और संगठन के माध्यम से कार्य किया, जबकि मोदी जी भाजपा के बाहर भी अपने सहयोगियों और व्यक्तिगत रूप से उनके प्रति निष्ठा रखने वाले लोगों की अपनी समानांतर संरचना बनाकर काम करते हैं। देखने से लग सकता है की यह वाजपेयी की ताकत थी, और मोदी की कमजोरी, परन्तु वर्तमान परिस्थिति में मोदी की निति जायज़ भी है देशहित में भी है।
वाजपेयी-मोदी की राजनीति हमें राजनीति की 2 बेहतरीन कांसेप्ट समझती है :
- राजनीति की राज-धर्म और
- राजनीति की चाणक्य-नीति
एकतरफ जहां वाजपेयी-आडवाणी युग राजनीतिक ‘राज-धर्म’ के खाके पर चलता था वहीं मोदी-शाह काल में इसका ‘चाणक्य-नीति’ का रुप दिखता है।
राजनीतिक ‘राज-धर्म’ :
1996 में भाजपा के Fire-Brand नेता लालकृष्ण आडवाणी ने “हवाला” डायरी में अपना नाम आने के तुरंत बाद संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा- “मैंने नैतिकता के आधार पर ये कदम उठाया है. मेरे अंतर्मन की आवाज मैंने सुनी। हमारी पार्टी सार्वजनिक जीवन में सत्यता के लिए प्रतिबद्ध है.”
उसी साल जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 दिनों में गिर गई थी, तो BJP ने इसके लिए बड़ा ही गर्व महसूस किया कि पार्टी के रूप में उनकी अपनी विशिष्टता है. उनकी पार्टी पहले की कांग्रेस पार्टी की तरह सत्ता की भूखी नहीं है।
अगर महाभारत के पात्रों से तुलना को आधार बनाया जाए तो अटल बिहारी वाजपाई, राजनीति में धर्मराज युद्धिष्टर की तरह थे। जिन्होंने मूल्यों और सिद्धांतों की राजनीति की। अटल जी जोड़-तोड़ के भी सख्त खिलाफ थे।
50 साल से भी ज्यादा वो सियासत में रहे लेकिन बेदाग रहे।अटल जी गलत के साथ भी गलत नहीं करते थे। उल्टा उन्हें सुधारने का प्रयास करते थे। इस लिए उन्होंने पाकिस्तान जैसे देश के साथ भी संबध सुधारने के अनथक यतन किए।
- भारत पाकिस्तान के लोग, एक दूसरे देश में आसानी से आ जा सकें, इस केलिए बस सेवा की शुरआत भी उन्होंने ही की थी।
- वो भारत के एक मात्र हिंदू नेता थे, जिनकी पॉपुलैरिटी मुस्लिम देश पाकिस्तान में भी बहुत ज्यादा थी।
- कश्मीर में अलगाववादियों से भी बातचीत शुरू करने वाले भी अटल बिहारी वाजपाई ही थे।
- कंधार विमान अगवा कांड के समय उन्होंने 155 यात्रियों को बचाने केलिए, भारतीयों जेलों में बंद कुछ चरमपंथियों को छोड़ दिया था।
- जिस कारण वाजपाई जी को आलोचना भी झेलनी पड़ी। एक प्रशासक के नजरिए से चाहे इस फैसले पर किंतु परंतु हो सकता है पर मानवता के नजरिए से यह एक बेहतरीन फैसला था।
- वाजपेयी जी सब को साथ लेकर चलने की राजनीति करते थे और उनके अपनी पार्टी ही नहीं, विरोधी नेताओं से भी संबंध बेहतरीन थे।
चाणक्य-नीति
नरेंद्र मोदी की तुलना महाभारत के अर्जुन से की जा सकती है। जिनका निशाना हमेशा मछली की आंख पर रहता है। चाहे हालात कैसे भी हों, वो अपनी नजर अपने लक्ष्य से नहीं हटाते।
2004 की हार के बाद शायद BJP को भी लगा होगा, की आदर्शवादी राजनीति करने से देश और यहाँ रहने वाले देश-वासियों का भला नहीं हो सकता है, फिर अपने मूल की अवधारणा में परिवर्तन करने की जरुरत पड़ी और अब 10 साल बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी पहले से कही ज्यादा dynamic हो गयी है।
वो आचर्य चाणक्य की साम, दाम, दण्ड, भेद नीति का बेखूबी इस्तेमाल करते रहे हैं। नरेंद्र मोदी ‘जैसे को तैसे’ में जवाब देने को सोच रखते हैं।
जैसे उन्होंने पाकिस्तानी अंतकवादियों द्वारा उरी और पुलवामा के हमले का जवाब,पाकिस्तान में घुसकर अंतकवादियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक कर के दिया था।
जब कश्मीर में आंतकवाद और अलगावाद नहीं रुका तो कश्मीर में धारा 370 को ही खत्म कर दिया और कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया।
नरेंद्र मोदी एक सख्त किस्म के प्रशासक हैं और वो अपने मंत्रियों, अफसरों और यहां तक के विपक्ष के साथ भी सख्ती के साथ पेश आते हैं।
वो अपने काम में बड़े नेताओं की दखल अंदाजी को बर्दाश्त नहीं करते।
नरेंद्र मोदी के कार्य काल में अर्थ व्यवस्था के मोर्चे पर उतार चढ़ाव जरूर रहे पर सुरक्षा व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार का कार्यकाल बेहतरीन रहा। और एक वैश्विक पटल पर बड़े नेता बन के सामने आये हैं। भारतीय इतिहास में ग्लोबल स्तर का इतना बड़ा नेता आज तक नहीं बना है कोई। इनकी बातो को अमेरिका ,रूस से लेकर फ्रांस, ब्रिटैन तक भी सम्म्मान करता है।
कोविड -19 की चपेट में आने के बाद पूरी दुनिया ने इनकी माइक्रो-मैनेजमेंट को बखूबी देखा और सराहा था। और उक्रेन- रूस युद्ध में भी आपने देखा होगा, पूरी दुनिया दो खेमे में बाँट गया था पर भारत अपना स्टेटस खुले रूप से दुनिया के पटल पर रखा और किसी ने भारत का कुछ बिगाड़ नहीं पाया।
बेशुमार चुनौतियों के बावजूद नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में जनता के भरोसे को कम नहीं होने दिया और अपनी लोकप्रियता को कायम रखने में सफल रहे हैं।
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