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Case Against Patanjali in Supreme Court | पतंजलि आयुर्वेद

पतंजलि केस और मामला:

17 अगस्त 2022 को पतंजलि के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोशिएसन ने सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दाखिल किया था। आरोप था कि बाबा रामदेव और पतंजलि सोशल मीडिया पर एलोपेथी के खिलाफ गलत जानकारी फैला रहे थे।

साथ- ही- साथ यह भी कहा था की पतंजलि प्रोडक्ट, कोविड वायरस समेत अन्य कुछ बीमारियों को पूरी तरह और स्थायी तौर पर ठीक कर सकते हैं। दरअसल, पतंजलि ने प्रिंट मीडिया में कुछ विज्ञापन जारी किए थे। इन विज्ञापनों में डायबिटीज और अस्थमा को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का दावा किया था।

पतंजलि पर दो कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया गया है। इसमें ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 का जिक्र है।

  • ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट में प्रावधान है कि किसी भी बीमारी को बिना साइंटिफिक प्रूफ के पूरी तरह ठीक करने का दावा करना गलत और भ्रामक है और यह कानून का उल्लंघन है।
  • लाइलाज बीमारियों के लिए जो दवाइयां बनती है उनका प्रचार नहीं किया जा सकता है।
  • कंज्यूमर प्रोटेशन एक्ट में प्रावधान है कि कोई कंपनी झूठा या भ्रामक प्रचार नहीं कर सकती है।  अगर वो ऐसा करती है और वो उपभोक्ता के हित के खिलाफ है तो यह कानून के उल्लंघन के दायरे में आता है।
  • अपनी पद्धति के लिए किसी दूसरे पद्धति को गलत नहीं कह सकते।

क्यों नाराज हो गया था सुप्रीम कोर्ट?’

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अमानुल्लाह ने 21 नवंबर 2023 को सुनवाई के दौरान कहा था, पतंजलि को सभी भ्रामक दावा करने वाले विज्ञापनों को तुरंत बंद करना होगा। कोर्ट का कहना था कि ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा और हर एक प्रोडक्ट के झूठे दावे पर 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

Case Against Patanjali | पतंजलि आयुर्वेद

बाबा रामदेव अगले ही दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और खुले रूप से एलॉपथी को झूठा कह देते हैं और भाषण में कहते हैं की महर्षि चरक के समय से ही इस देश में आयुर्वेद चल रहा है। तो कोर्ट के अनुसार, उनके दिए हुए आदेश का यह अवहेलना हुआ।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और अवमानना 

हम तुम्हें फाड़कर रख देंगे!

“We will rip you apart”

कोर्ट की अवमानना के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को धमकी दी है।

इस भाषा पर अनेक पूर्व न्यायाधीशों ने आपत्ति प्रकट की है। इस जज की भाषा इसी प्रकार की है मानों यह देश के मुगल बादशाह हों।

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन मामले में पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ काफी सख्त टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने यहां तक कहा कि आपकी धज्जियां उड़ा देंगे। इससे पहले योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने हलफनामा देकर माफी मांग ली थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया और कहा कि ‘हम इतने उदार नहीं होना चाहते।’ कोर्ट ने कहा कि उन्होंने ऐसा तब किया जब गलती पकड़ ली गई है। सुप्रीम कोर्ट अब उन्हें दंडित करने का मन बना चुका है। सुनवाई करने वाले जजों ने सख्त लहजे में कहा कि आरोपियों को अंडरटेकिंग के उल्लंघन के मामले में कार्रवाई का सामना करना ही होगा।

अहसानुद्दीन अमानुल्लाह नियमित प्रक्रिया से बने हुए जज नहीं हैं अपितु इसे अल्पसंख्यक कोटे से जज बनाया गया है। इस देश में अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमान ही हैं जो 20% हैं,पारसी, यहूदी तथा अब सिख,जैन,बौद्ध भी अल्पसंख्यक हैं,लेकिन लाभ मात्र मुसलमान को ही मिलता है।

अदालत की अवमानना तो प्रशांत भूषण ने भी करी थी, उसे बार-बार माफी मांगने के लिए कहा गया लेकिन वह डटा रहा और माफी नहीं मांगी। क्योंकि सिस्टम तो हमारा है यह वह जानता था कि उसका कुछ भी उखड़ने वाला नहीं है। अंत में उसे अपराधी घोषित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपने मान का आकलन करते हुए एक रुपए का आर्थिक दंड दिया जो उसने मीडिया को दिखाते हुए और कोर्ट की खिल्ली उड़ाते हुए,धूर्त मुस्कान के साथ दिया।। जबकि बाबा रामदेव ने दो बार बिना शर्त माफी मांगी उसे अमानुल्ला ने स्वीकार नहीं किया।

पश्चिमी चिकित्सा बनाम आयुर्वेदिक चिकित्सा 

1954 का नेहरु सरकार का बना कानून जिसमें लिखा है कि कोई नपुंसकता, कैंसर,संतानोत्पत्ति,लकवा,मिर्गी,ब्लड प्रेसर आदि रोगों के निदान का दावा नहीं कर सकता। उस पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान किया गया। भारत में आयुर्वेद वैदिक काल से ही है,यह कानून उस पर प्रतिबंध लगाता है क्योंकि उसमें अनेक बिमारियों को ठीक करने के लिए दवाएं बताई गई हैं जो जड़ी बूटी से बनती हैं।

हमारे देश में आयुर्वेद चिकित्सा ब्राह्मण ही करते थे,जो जंगलों में जाकर जड़ी बूटियाँ ढूंढ कर लाते थे,काढा,स्वर्ण,चंद्र,लौह,ताम्र भस्म, जड़ी बूटियों को सुखाकर कूट कर पाउडर बनाना यह सब कर दवाएं बनाते थे। यह मैंने अपने गांव में होते समय तक स्वयँ देखा है।

ऐलोपैथी में डा. की फीस है जो निश्चित होता है और चुकाना ही पड़ता है। कोई बिमारी ठीक नहीं होती हृदय रोग, बल्ड प्रेशर, मधुमेह आदि हुआ तो जीवन भर दवा खाते रहो और यह दवाइयाँ कभी कम नहीं होती अपितु फिर इनसे अन्य रोग भी हो जाते हैं फिर आप किडनी आदि की दवा भी खाओ।

जबकि योग कहता है कि योग करो और बीमार ही न पड़ो,आयुर्वेद में रोग का निदान होता है दूसरा रोग नहीं होता ऐलोपैथी की भांति।

दवा माफिया आयुर्वेद को समाप्त कर देना चाहता है,बाबा ने तो एक उच्च स्तरीय आयुर्वेद अनुसंधान शाला भी खोल रखी है और मी लॉर्ड को इस पर भी आपत्ति है।

वह इसे प्रमाणिक नहीं मानता लेकिन लेक्मे आदि कम्पनियों की गोरा करने की क्रीम को सही मानता है? वह भ्रामक प्रचार नहीं है, पास्ता,हैंड वाश आदि इम्युनिटी बूस्टर हैं यह स्वीकार करता है?

आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है इसमें कोई दोराय नहीं। किससे इलाज करवाना है ये तय करने का अधिकार रोगी का है, हम तो आवश्यकतानुसार आयुर्वेद चिकित्सा का उपचार कराएंगे और एलोपैथी का भी, किसी को इसमें क्यों आपत्ति है ? रही बात विज्ञापन की तो भारतीयों में विवेक है कि कौन मूर्ख बना रहा है कौन नहीं। जबदस्ती एलोपैथी को थोपने और आयुर्वेद को हतोत्साहित करने का प्रयास है ये।

एलोपैथी इलाज में हॉस्पिटल में आँधी लूट चल रही है। आप मजबूरिबश अगर हॉस्पिटल में चले गये तो उनके लिये आप बलि का बकरा हैं। आप को घेर कर, डरा कर उन्होंने आप को लाखों रुपए का चूना लगा देना हैं। एलोपैथिक औषधि में असल क़ीमत से पाँच दस गुना की एमआरपी प्रिंट करवा कर जेब काटी जा रही है। माननीय मी लॉर्डों ने आँखें मूँद रखी है। उनके कान पर जूँ तक नहीं रेंगती। पर उन्हें अपने फेक सेक्युलर मास्टर्स का एजेंडा चलाने के लिये जब भी कोई स्वदेशी, या राष्ट्रवादी नूपुर शर्मा या बाबा रामदेव जैसा उनके चक्रव्यूह में आ जाता है तो उन की ये लोग बखियाँ उधेड़ना सुरूर कर देते हैं।

न्याय से, पब्लिक ओपनियन, डेमोक्रेसी से इन्हें कोई मतलब नहीं। मतलब से तो सिर्फ़ अपनी अहंकार सर्वोचता से जिसमे ये अपने आप को भगवान से भी ऊपर समझते हैं, या मतलब है अपने ब्रिटिश लीगेसी वाले आकाओं, जिन्होंने अपने राज में इस सिस्टम में फिट किया, के एजेंडे को चलाना 

Free Hindu temples from Government

Free Hindu temples from Government

क्षमायाचना करने वाले को क्षमा करना आपके व्यक्तित्व को परिभाषित करता जिससे अमानुल्ला जैसा जज विहीन है, इसलिये इस अमानवीय जज से ऐसी उम्मीद करना व्यर्थ है। अच्छा होगा इस जज को इसके न्यायालय मे ही उचित जवाब दिया जाय और इसकी न्यययिक क्षमता को उजागर किया जाय, इसके लिये हमारे प्रबुद्ध वकील ही काफी हैं।

Supreme court और IMA का दोहरा चरित्र :

सुप्रीम कोर्ट के इतने कड़े रवैये पर सोशल मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। एक वर्ग इंडियन मेडिकल असोसिएशन (IMA) के इरादे पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है आईएमए एक मामले में दोहरा रवैया अपना रहा है। उसे पतंजलि के विज्ञापन पर तो ऐतराज है, लेकिन क्रिश्चियन मिशिनरियों और विदेशी कंपनियों के भ्रामक दावों पर बिल्कुल चुप रहता है।

  • जिस पैमाने पर पतंजलि और बाबा रामदेव गलत हैं, उन्हीं पैमानों पर ईसाई संस्थाओं को भी घेरा जाना चाहिए। इन्हीं बीमारियों को ठीक करने के नाम पर धर्मांतरण किया जा रहा है, लेकिन वहां न आईएमए की नजर जाती है और ना किसी कोर्ट की।
  • ‘स्टिंग जहर के समान है, लेकिन मार्केटिंग ‘एनर्जी ड्रिंक’ के तौर पर होती है।  बच्चों को इसका एक बूंद नहीं पीना चाहिए, लेकिन वो पीते हैं। आईएमए ने कभी स्टिंग की मालिकाना कंपनी पेप्सी के खिलाफ शिकायत नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे कभी नहीं कहा कि तेरी धज्जियां उड़ा दूंगा।’
  • क्या मदर टेरेसा जिसको जीते जी चमत्कारी संत घोषित किया,जो छूकर बीमारी ठीक करती थी वह हॉस्पिटल में तड़प तड़प कर मरी, आपने   कभी सवाल उठाया?
  • क्या आपने किसी डॉक्टर को आंखों के डॉक्टर को चश्मा लगाते हुए इलाज करते देखकर उसके ऊपर सवाल उठाया?
  • क्या हमने देश के अंदर लाखों विदेशी कंपनियां जो लूट रही है उस पर सवाल उठाया ?
  • जॉनसन एंड जॉनसन के ऊपर अमेरिका में पाउडर से कैंसर होने 32000 करोड का जुर्माना किया गया, क्या आपने कभी उसके ऊपर सवाल उठाया ?

    याद रखिये हम यह विरोध करके पतंजलि का नही भारत का नुकसान कर रहे हैं?

Contempt Case Against Patanjali, Baba Ramdev

Tietler

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